ये दुनिया (Ye Duniya) Poem by Nirvaan Babbar

ये दुनिया (Ye Duniya)

ना थामा है किसे ने, ना थामेगा कोई,
गिरे बैठे हैं, ना उठाएगा कोई,

कश्मकश इतनी है,
है कितनी, ना पूछो हम से,
क्या करें, या ना करें, यारो,
अब ना सूझे, कुछ भी,

ना पता, सहर का है,
अब ना, पता है, शब का,
कोई आदम, ही नहीं साथ,
जब, क्या भरोसा रब का,

ना चाहत है, किसी शह की,
ना माँगा कुछ भी,
फिर भी, ना समझी ये दुनिया,
ना पहचाना हमको,

ना थामा है किसे ने, ना थामेगा कोई,
गिरे बैठे हैं, ना उठाएगा कोई,

निर्वान बब्बर

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Friday, April 4, 2014
Topic(s) of this poem: life
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