गुल खिला बहुत मोहब्बत के मगर, प्यार् की गहरायी न माप सका
जिन्दगी गा गा कर थक गया प्यार् के नगमे बहुत, पर प्यार् की कलायी न छू सका
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जिंदगी न प्यार है, न गम की दरिया
न कश्ती नदी की, न पतवार ही कश्ती की
न बेबस किसी बस्ती की, न शृंगार किसी हस्ती की
न आज़ाद इस गगन मे, न ही किसी बंधन मे
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काश दिल दिल का शायरी करता
मगर धरती नाचती और आकाश नचाता
महज एक रात की बात है,
कबूतर एक प्रेमी से कहा क्या हुआ तेरा,
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दिल तो दिल की धरकन सुनता, कोई प्यार नहीं इकरार करता
ये समा हमारे दिल की दर पर, रोज साम जला करता
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