sumit jain

sumit jain Poems

खुशियो के माहोल में जन्मा
हर कोई मुझे खिलाता
सब कि चाहत में बनजाता
कभी में रोता तो कभी में हस्ता
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ये युग है डिजिटल का
ऑनलाइन है संसार
इन्टरनेट है मुल्क
ईमेल है एड्रेस हमारा
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मन उदास है साल जा रहा है
कई लम्हे साथ छोड़ रहे है
कई ख़्वाहिशें दम तोड़ रही है
कई यादें रह रह कर आरही है
...

ye yug hai digitak ka
online hai sansaar
internet hai mulk
email hai address hamara
...

The Best Poem Of sumit jain

मौत का दामन थामा

खुशियो के माहोल में जन्मा
हर कोई मुझे खिलाता
सब कि चाहत में बनजाता
कभी में रोता तो कभी में हस्ता
अपनी ही दुनिया में रम जाता
माँ कि लोरिया सुनते
मेरा बचपन युही गुजर जाता
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

गर्व से मैं इठलाता जवानी पर
कुछ कर दिखाने कि चाहत है
मानो जोश सा है जिन्दंगी में
में भूल गया हु खुद को इस चकाचौंध में
में भाग रहा हु चंद रुपियो कि चाह में
यहा रिश्ते बनते है और बिगड़ते है
न जाने फस गया हु रिश्तो के भवर में
मानो खुद से आख मिचोली कर रहा हु
न जाने कब समझुंगा,
समय हाथ से निकलता जारहा है
और बुढ़ापा हावी होरहा है
न जाने यह जवानी बीत सी जाती
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

हाथ जोड़ कर
में खड़ा हु शांत मन से
जीवन कट रहा है यादो से
यादे भी मानो धुंधली होगई
मस्तिष्क भी थक चूका है
कमर भी झुक गई है
यही तो लाचारी है और कमजोरी है
यही तो जीवन कि नियति है
बुढ़ापा सामने खड़ा है,
और पूरा माहौल बदल गया है
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

में क्यों भूल जाता हु
में जन्मा ही हु बिछड़ ने के लिए
ये रिश्ते नाते सब छलावा है
न तो यह शरीर तुम्हारा है
और न ही तुम इस शरीर के हो
में क्यों नहीं समझ पाया
मौत जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है
किन्तु मैं तो आत्मा हूं
मे शारीर से भिन्न हु
एसा यह आत्मा मात्र आत्मा हु
और कुछ नहीं
तो बताओ मै कौन हूँ? ?
मे भगवान आत्मा हु
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा

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