खुशियो के माहोल में जन्मा
हर कोई मुझे खिलाता
सब कि चाहत में बनजाता
कभी में रोता तो कभी में हस्ता
अपनी ही दुनिया में रम जाता
माँ कि लोरिया सुनते
मेरा बचपन युही गुजर जाता
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा
गर्व से मैं इठलाता जवानी पर
कुछ कर दिखाने कि चाहत है
मानो जोश सा है जिन्दंगी में
में भूल गया हु खुद को इस चकाचौंध में
में भाग रहा हु चंद रुपियो कि चाह में
यहा रिश्ते बनते है और बिगड़ते है
न जाने फस गया हु रिश्तो के भवर में
मानो खुद से आख मिचोली कर रहा हु
न जाने कब समझुंगा,
समय हाथ से निकलता जारहा है
और बुढ़ापा हावी होरहा है
न जाने यह जवानी बीत सी जाती
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा
हाथ जोड़ कर
में खड़ा हु शांत मन से
जीवन कट रहा है यादो से
यादे भी मानो धुंधली होगई
मस्तिष्क भी थक चूका है
कमर भी झुक गई है
यही तो लाचारी है और कमजोरी है
यही तो जीवन कि नियति है
बुढ़ापा सामने खड़ा है,
और पूरा माहौल बदल गया है
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा
में क्यों भूल जाता हु
में जन्मा ही हु बिछड़ ने के लिए
ये रिश्ते नाते सब छलावा है
न तो यह शरीर तुम्हारा है
और न ही तुम इस शरीर के हो
में क्यों नहीं समझ पाया
मौत जीवन का सबसे बड़ा रहस्य है
किन्तु मैं तो आत्मा हूं
मे शारीर से भिन्न हु
एसा यह आत्मा मात्र आत्मा हु
और कुछ नहीं
तो बताओ मै कौन हूँ? ?
मे भगवान आत्मा हु
जब से में जन्मा
तब से मेने मौत का दामन थामा
Dear Sumit Your poem is the reality of most of the persons in the world. We have to run after money even if we don't wnt to. For we have the responsibility of others too. Nice poem If you like English poems, please come and have a look at my poems and say some thing One more thing I want to say with an apology that your poem has so many spelling mistakes as par hindi language. Please correct them if you like.
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I would like to translate this poem
nice poem and also read my poem