परछाई Poem by Shobha Khare

परछाई

सागर से ज्यादा होती है गहराई दोस्ती की
दीवाने नहीं सहते जुदाई अपनों की I
गम की धूप मे जलते है अरमान मेरे
मन को सुकून देती है परछाई प्यार की II

Saturday, September 12, 2015
Topic(s) of this poem: life
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