अभी Poem by Ajay Srivastava

अभी

अब तो आसमान छूने चला है।
लेकर अपने संग आधुनिक विज्ञानं की तकनीक।
मशाल उठा ली है चुनौतिओ से लड़ और जितने की चाहत है।
पा लेगा वो हर मंजिल को जो चाहत है उसकी।
.
हा अभी अभी पता चला है।
मेरा भारत आकाश छूने चला है।
भीतर का इंसान जगाने चला है।
अनैतिकता को त्याग वो नैतिकता अपनाने चला है।
कठिन रास्ते है फिर भी नहीं डगमगायेगा वो।
पा लेगा वो जो है उसकी चाहत।

हा अभी अभी पता चला है।.
मेरा भारत नैतिकता का आसमान छूने चला है।

अभी
Saturday, November 28, 2015
Topic(s) of this poem: thought
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