अकड़ न ज्यादा दिखा न नखड़े बन जा अब दुमछल्ले.
धीरे-धीरे कल्ले -कल्ले हो जाएगी बल्ले-बल्ले
गर्ल फ्रेंड को गुडबॉय कह, भूल जा यारा यारी.
साले-साली की सेवा की कर तू अब तैयारी.
खुद की समझ विसर्जित कर अब उनसे बुद्धि-अकल ले.
अकड़ न ज्यादा...............................
भूल जा यारा धमाचौकड़ी, डेटिंग-वेटिंग, धींगामस्ती.
सच्चे मन से चरण धूलि ले कर ले भइये उनकी भक्ति.
हुक्म है जितना घरवाली का बस उतना ही चल ले.
अकड़ न ज्यादा...........................................
माना की तू पुरूष है प्यारे पर नारी क्या कम है.
उसमें भी तो झांसी की रानी जैसा दमखम है,
नहीं मोर्चा लेने का बस थोड़ा बहुत उछल ले.
अकड़ न ज्यादा....................................
सहनशीलता का पुतला बन कानों को कर बहरा,
आंखों को भी समझा दे है उन पर अब पहरा,
फिर भी गर कुछ हो गड़बड़ तो पतली गली निकल ले.
अकड़ न ज्यादा........................................
चलनी है सरकार उन्हीं की किये जा उनकी जयजयकार.
गठबंधन का मंत्र यही है कहती है भारत सरकार.
हर इक गलत-सही पर उसकी थोड़ा-बहुत मचल ले.
अकड़ न ज्यादा...........................................
उपेन्द्र सिंह 'सुमन'
bahut khooob! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !
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वाह! वाह! क्या बात है. हास्य -व्यंग्य की एक खूबसूरत, प्रभवी और मनोहारी रचना - डा. आर. सिंह