एक आँखों देखी
आप को सुना रहा हूँ
शब्दों में ढालकर आप तक पहुँचा रहा हूँ.
दो पहिया वाहन पर
वह आगे बैठा था,
उसने हैंडल पकड़ रखा था.
वह पीछे बैठी थी
और चमगादड़ की मानिंद
उसको जमकर जकड़ रखा था.
चौराहे पर खड़ी भीड़ में से कुछ लोगों ने
इस कलयुगी दृश्य को देख कर कहा -
ये निर्लज्जता है, बेशर्मी है,
कुछ लोग बोले -
लगता है समझ की कमी है.
एक सज्जन ये भी तर्क देते हुये दिखे
कि -
ये उनकी विवशता है, उनकी मज़बूरी है,
ठंड के मौसम में ऐसा करना जरूरी है.
कतिपय लोग तटस्थ भाव से रहे चुपचाप,
कुछ ये दृश्य देख चौंके
और चिल्लाये - बाप रे! बाप!
सबकी अपने-अपने अंदाज में
अपनी-अपनी प्रतिक्रिया रही.
अब आप ही बताइये -
क्या गलत है और क्या सही?
बहरहाल,
ऐसे भद्दे और बदसूरत दृश्यों का दिखना
महानगरों में अब आम है,
क्योंकि यहाँ ओछापन सरेराह बिकता है
और उसका ऊँचा का दाम है.
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Nice poem...and really a true illustration of real life scene...thanx for sharing :)