धमाचौकड़ी है दिल्ली में Poem by Upendra Singh 'suman'

धमाचौकड़ी है दिल्ली में

Rating: 5.0

धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में अंधियाला.
काट रहे वो दूध-मलाई, मचा रहे हैं गड़बड़झाला.

चोर-लुटेरों की पौ-बारह, जन-गण-मन के बजते बारह.
लूट रहे हैं घर रखवाले, राजनीति के खेल निराले.
उम्मीदों की चिंगारी को, निगल रहा है मावस काला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

कमर तोड़ती है मंहगाई. हाथ तंग है आफत आई.
आग़ लग गई है दामों में, अन्न सड़ रहा गोदामों में.
कैसे चलेगी रोटी-पानी, बुधुआ का पिट गया दिवाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

संविधान का क्या है लेखा, लोकतंत्र का हाल ये देखा.
संसद में नित घमासान है, कहते हैं भारत महान है.
नेता अज़ब-गज़ब प्राणी है, तन का उजला मन का काला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................


आरक्षण गठबंधन दंगे, बने हैं सत्ता के हथकंडे.
शकुनी मन है ज़हर भरा, राजनीति हो गई मंथरा.
दुर्योधन की मनमानी है, जाने क्या है होने वाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................


कुर्सी पर होती तकरार, छल-प्रपंच की जय-जयकार.
कुर्सी की महिमा अति न्यारी, राजधर्म पर कुर्सी भारी.
सत्ता के गलियारों में है, घूस कमीशन और घोटाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

मीरजाफरों की मनमानी, कैसे बचे देश का पानी.
चोर उचक्के हैं आबाद, अँधकार की जिंदाबाद.
देवभूमि का हाल न पूछो, जाने क्या है होनेवाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

लक्ष्मी को है देश निकाला, स्वीडिश बैंक में धन है काला,
जनता की लुट रही कमाई, अपनी दौलत हुई पराई.
अपनी पूँजी है विदेश में, किस्मत पर लटका है ताला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

धर्मराज घर गोरखधंधा, न्याय हो चला है अब अँधा.
पग-पग खड़े लुटेरे लैश, जिसकी लाठी उसकी भैंस.
रक्षक ही भक्षक बन बैठे, डाका डाल रहा घर वाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................


लोकतंत्र का चौथा खम्भा, प्रेस कर गया अज़ब अचम्भा.
लक्ष्मण रेखा लांघ गया वह, धर्म मार्ग से भाग गया वह.
अंधकार में सूरज डूबा, कहाँ रहा अब उजियाला.
धमाचौकड़ी है दिल्ली में, सकल देश में...................

Sunday, January 3, 2016
Topic(s) of this poem: politics
COMMENTS OF THE POEM
anay kumar 14 May 2018

Sir , You are a good poet

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Mithilesh Yadav 01 February 2016

Fantabulous.............. Hanstey hanstey hi bata dena ki ansu chalak gaye...... Meri kavita samjha di sabko yehan to jahan sarma jayega......

0 0 Reply
Rajnish Manga 03 January 2016

दिल्ली के दुरंगे जीवन पर एक सुंदर व्यंग्य कविता. धन्यवाद, मित्र.

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