मम्मी, मम्मी मेरे पापा, क्यों रहते मुझसे नाराज?
कभी नहीं कुछ कहते मुझसे, और न करते कोई बात.
एक सुबह जब मैंने पूछा, चंदा मामा कहाँ गये?
पापा बोले चुप बैठो तुम, जहां था जाना वहाँ गये
कल तड़के जब मैंने पूछा, फूल सुबह क्यों खिल जाता है.
पापा ने झट डांट लगाई, बोल पड़े क्यों चिल्लाता है?
सांझ ढले फिर मैंने पूछा, चंदा को क्यों मामा कहते?
बिना विचारे बोल पड़े वो, तुम तो बिल्कुल बुद्धू लगते.
एक रात जब मैंने पूछा, चंदा क्यों है घटता-बढ़ता.
पापा बोले चुप बैठो तुम, तुम्हे फर्क क्या इससे पड़ता.
आज़ दोपहर जब ये पूछा, ‘CUP' होता क्यों कप.
पापा बोले अब न बोलना, ‘डोंट टॉक शट अप'.
पूसी को वे खूब खिलाते, दूध बतासे उसे पिलाते.
उससे मीठी बातें करते, पर मुझ पर वेवजह बिफरते.
टॉमी को ऑफिस ले जाते, टॉफ़ी बिस्किट उसे खिलाते.
उछल-कूद संग उसके करते, पर मुझसे कुछ कभी न कहते.
मोबाईल पर खूब चहकते, घंटों गिटपिट-गिटपिट करते.
पर मुझसे क्यों रूठे रहते, आखिर क्यों ऐसा वे करते?
मम्मी मुझे बताओ आज़, आखिर मेरा क्या अपराध?
मम्मी मुझे बताओ आज़, मम्मी मुझे बताओ आज़.
सुन बच्चे के मन की बातें, मम्मी की भर आयीं आँखें.
दुःख की बदली उमड़ पड़ी तब, सिसकी में बंध गईं थी साँसें.
भारी मन से मम्मी बोलीं, बेटे सब्र करो तुम आज़.
पापा से मैं बात करूंगी, क्यों रहते तुमसे नाराज?
एक सुबह मौका पाकर तब, मम्मी जी जज बन बैठीं.
आर्डर! आर्डर!
बच्चे से क्यों बात न करते......? पापा से वे तन बैठीं.
पापा भी भी मुँह खोल पड़े, बैरिस्टर से बोल पड़े.
समय कहाँ है मेरे पास, बच्चे से करता क्या बात?
देख के पापा का अंदाज, मम्मी भी हो गईं नाराज.
थोड़ी सी गंभीर हुईं, और फिर गूंजी उनकी आवाज.
आर्डर! आर्डर!
‘प्वाइंट' बड़ा फ़िज़ूल है, ये भी कोई वसूल है?
बच्चों से नफरत करना, बहुत ही भारी भूल है.
ये तो रूप हाँ ईश्वर के, इनमें नहीं गुरूर है.
इन बच्चों पे प्यार लुटाना, दुनिया का दस्तूर है.
बच्चों को बेवजह डाँटना, बहुत ही बड़ा कसूर है.
जो बच्चों से नफरत करता, ईश्वर उससे दूर है.
बेटा अपना प्यारा है, आँखों का ये तारा है.
दिल को छूती बातें करता, अपना राज दुलारा है.
सुन मम्मी की प्यारी बातें, पापा की भर आईं आँखें.
भारी मन से डोल पड़े वो, बेटे को ले बोल पड़े वो.
अच्छा-अच्छा जान गया मैं, सारी बातें मान गया मैं.
बेटा मेरा न्यारा है, मेरा राजदुलारा है.
फूलों से भी प्यारा है, ये तो भाग्य हमारा है.
समझ गए जी समझ गए हम, आँखों का ये तारा है.
सुन पापा की प्यारी बातें, मम्मी की चमकी तब आँखें.
उछल पड़ी कुर्सी से मम्मी, जैसे मिलीं परी को पाखें.
फूले नहीं समाये दोनों, चहक पड़े दोनों मिल साथ.
भूली खुशियाँ घर को आयीं, प्यार लुटाया हाथों-हाथ.
मम्मी बोलीं बेटा प्यारा, पापा बोले जग से न्यारा.
मम्मी बोलीं राजदुलारा, पापा बोले भाग्य हमारा.
पापा-मम्मी की सुन बातें, बेटे की गूंजी आवाजें.
घर की खुशी रहे आबाद, पापा-मम्मी जिंदाबाद.
Wonderfully written beautiful poem...thank you for sharing :)
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आप सौभाग्यशाली हैं कि आपको श्रोता ढूँढने की जरुरत नहीं पड़ती. दो नन्हें (प्रिय नीहारिका और निखिल) श्रोता ही काफी हैं. वैसे मैं आपको बता दूँ कि यह कमाल की कविता है और इसकी रोचकता बाल मनोविज्ञान की सूझ-बूझ पर आधारित है. इसे मैं अपनी पसंदीदा कविताओं में शामिल कर रहा हूँ. धन्यवाद.