तथा अस्तू Poem by Ajay Srivastava

तथा अस्तू

राह मे चलते चलते|
कदम थम से गए|
आखो मे चमक आ गयी|
दिल मे अनेक रंग खिल गए|
मस्तिष्क मे अनेक प्रशन जग्रत हो गए|

सोचा ना था इतनी जल्दी सामना हो जाएगा|
चाहते प्रगट करने का शीध्र अवसर मिलेगा|
चाहत पूरी होने का समय आ गया|
खुशी मे सबके लिए शंति और सुख की चाहत मांग बेठा|

बस ईतनी सी चाहत है|
'तथा अस्तू' कह भगवान अदृशय हो गए|

Thursday, January 21, 2016
Topic(s) of this poem: wish
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