अतिथि Poem by Ajay Srivastava

अतिथि

Rating: 5.0

वो अधरो पर मुसकान लिए
जेसे हमारे स्वागत के लिए हो |

चेहरे पर आयी खिलखिलाट
मानो हमारे आने की खुशी वयक्त कर रही हो|

वो तुम्हारा प्यार से देखना
पल पल आत्मीयता का अहसास|

कभी कभी चेहरे पर न चाहते हुुए रोष के भाव
मानो कह रहे हो हमारे से अनूचित व्यवहार करने का भाव|

अगले ही पल उदासी के क्षण
जेसे कह रहे हो कुछ पत और रूकने का निवेदन कर रहे हो|

अतिथि
Monday, January 25, 2016
Topic(s) of this poem: welcome
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 25 January 2016

Having heart touching feelings of humanity is definitely interesting and amazing.10

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