कैसे होते हैं ये रिश्ते घराने वाले Poem by Ahatisham Alam

कैसे होते हैं ये रिश्ते घराने वाले

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सिर्फ अपना मतलब हल करना
कैसे होते हैं ये रिश्ते घराने वाले
दौलत की चमक में जीने वाले
मजबूरों पे सितम ढाने वाले
घुट के जो ज़माने के का हर ज़ख्म सहती है
टूट के बिखर जाये मगर खामोश रहती है
ख़ाक हो जाएंगे मेरी जाँ को सताने वाले
एक आलम है बेचैन तेरे आलम से
कितना रोता है अकेले में तेरे ग़म से
मेरी बाहों में सिमट आओ मुझको रुलाने वाले

Saturday, May 21, 2016
Topic(s) of this poem: love
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