खुद को पत्थर मान अगर तुम शीशे से टकराओगे
इस संसार रुपी राजनीति में तभी तुम नेता कहलाओगे
सम्मुख कोई भी हो वो भी तो इंसान है
सोचो कब उससे कम तुम्हारा अपना अभिमान है
तुम्हारी आज की कार्यशैली ही तुम्हारा कल रखती है
बाधा कुछ भी हो खुद में वो अपना हल रखती है
अगर युद्धभीड़ में शामिल हुए तो उसी में खो जाओगे
जब राह नई चुनोगे तभी मार्गप्रवर्तक बन पाओगे
खुद को पत्थर मान अगर तुम शीशे से टकराओगे
इस संसार रूपी राजनीति में तभी तुम नेता कहलाओगे!
Leaders of the day, well defined. Thanks for sharing.10 points.
जीवन का व्यवहारिक ज्ञान निहित है आपकी इस कविता में. बहुत सुंदर. धन्यवाद. बाधा कुछ भी हो खुद में वो अपना हल रखती है
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Wish I could read your poem. RoseAnn