सपनो से बहुत गुफ़्तगू रहती है मेरी
कभी खुली कभी बंद आँखों में पलते हैं
कभी फिसल जाते हैं रेत की तरह हाथ से
कभी हक़ीक़त की तरह साथ में चलते हैं
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
Wah Wah..Bahut badiya