सपनो से बहुत गुफ़्तगू रहती है मेरी Poem by Yashvardhan Goel

सपनो से बहुत गुफ़्तगू रहती है मेरी

सपनो से बहुत गुफ़्तगू रहती है मेरी
कभी खुली कभी बंद आँखों में पलते हैं
कभी फिसल जाते हैं रेत की तरह हाथ से
कभी हक़ीक़त की तरह साथ में चलते हैं

Thursday, September 8, 2016
Topic(s) of this poem: love and dreams
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 08 September 2016

Wah Wah..Bahut badiya

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Yashvardhan Goel

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