(1)
सगरी रैनि रहे मौरे संग,
रात जगाय करे मोहि तंग,
फेर भी मोहि लागे अपना,
क्योँ सखि साजन? ना सखि सपना।
(2)
उनके दर्शन अखियाँ तरसे,
कबहूँ उतरेगी चुनरी सर से,
कबहुँ आवेगो अति मन भावन
क्योँ सखि साजन? ना सखि सावन।
(3)
उनके सामने सज-धज जाऊँ,
उनके माहिँ मोँहि छवि पाऊँ,
उन पे मोरो तन मन अर्पण
क्योँ सखि साजन? ना सखि दर्पण।
(4)
सगरी रैनि मौरे संग सोवत,
तन सुं लिपट सब दुःख खोवत,
शीतल माहिँ भी लागे गर्माई
क्योँ सखि साजन? ना सखि रजाई।
(5)
नित मौरे संग रैनि बितावे,
भौर भऐ तब बिछुर जावे,
याद आवे तब दिवस सारा
क्योँ सखि साजन? ना सखि तारा।
(6)
आधी रात मौरे ऊपर आवे,
देख मोरे मन आनंद आवे,
तब सरके वा मंदा-मंदा
क्योँ सखि साजन? ना सखि चंदा।
(7)
इक पल उससे बिछुर ना पाऊँ,
बिछरुँ भी तो मैँ मर जाऊँ,
वा है मोरे दिल का जानी
क्योँ सखि साजन? ना सखि पानी।
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