हम.कभी न.सँभल सकेंगे Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हम.कभी न.सँभल सकेंगे

हम.कभी न.सँभल सकेंगे,
लाख. ठोकरें.खाने.के.बाद,
भले.ही.जमाना.सुधर.जाये,
मेरे.गुजर. जाने..के....बाद।
जब.तक दुनिया रहेगी. जिंदा,
फरेब रहेगा हरदम..कायम,
कभी न.चाँद. औ सूरज.बदले,
फकीरों के पैदा.होने..के..बाद।
अपने. अपने का सपना.देखते,
अमल में.जो कभी न.आ.पाते,
दिखाने.में कहीं.तनिक. फर्क.नहीं,
'नवीन'.हकीकतआ्ँखें.मू्दने के.बाद।

Monday, March 13, 2017
Topic(s) of this poem: love and dreams
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