लाख समझाया अपने मन को, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

लाख समझाया अपने मन को,

लाख समझाया अपने मन को, भूलने की राह न तकते हैं,
हजार बार बताया नजरों को, तेरी दर से न तनिक हटते हैं,
कई बार बताया जुबान को, लेकिन तेरा ही नाम लेते हैं,
अपने जादू का बता दो इल्म, क्यों हम तुम पर ही मरते हैं।
वाह! दिल मेरा, बादशाहत तेरी!

Tuesday, November 28, 2017
Topic(s) of this poem: love
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