आरजू Poem by Mithilesh Dixit

आरजू

ऐ खुदा! एक आरजू है तुझसे
इस घायल और बेबस दिल के घावों को भर दे |

सहने की शक्ति दे, लड़ने की शक्ति दे
तू चाहे तो सब कुछ छीन ले मुझसे;
बस एक बार उसको दिल से लगने का अवसर दे |

ऐ खुदा! एक आरजू है तुझसे....
इस घायल और बेबस दिल के घावों को भर दे |

इस दिल को और दर्द दे,
उन दर्दों में सो दर्द दे,
तू चाहे तो सारे दर्द मुझे ही दे;
लेकिन उसकी एक मुस्कान दिखा जो इन दर्दों को हर दे |

ऐ खुदा! एक आरजू है तुझसे...
इस घायल और बेबस दिल के घावों को भर दे |

तू मुझे उससे दूर कर दे,
रोने को मजबूर कर दे,
तू चाहे तो कोई नयी दस्तूर कर दे;
लेकिन है गर हिम्मत तुझमे तो इस दिल से उसे दूर कर दे |

ऐ खुदा! एक आरजू है तुझसे...
इस घायल और बेबस दिल के घावों को भर दे |

तू मुझे मंदिर में न जाने दे,
तू मुझे मस्ज़िद में न जाने दे,
तू चाहे तो सारे मन्नतों के कपाट बंद कर दे;
लेकिन मांगूं मैं उसे और पूरी हो मन्नत ऐसी कोई दर दे |

ऐ खुदा! एक आरजू है तुझसे
इस घायल और बेबस दिल के घावों को भर दे |

Sunday, March 26, 2017
Topic(s) of this poem: god,request
COMMENTS OF THE POEM
Khyati Jain 12 May 2018

👌👌👌👌

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