ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी का तलबगार नहीं हूँ।
बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ...
माफ़ करना न निभ सकेंगे ज़माने के बदचलन,
बेजान सी रवायतें, रिश्ते ये दिलशिकन।
नादां हूँ, कमअक्ल हूँ, बीमार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी का तलबगार नहीं हूँ।
बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ...
अच्छा न कर सके तो बुरे से भी है तौबा,
काशी है नेकचलनी, ईमान है काबा।
तिनका सही मामूली, खर-पतवार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी का तलबगार नहीं हूँ।
बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ...
अपनी तो यह है ज़िन्दगी पैगाम-ए-मुहब्बत,
दामन पर लगने दी नहीं रंजिश-ओ-खार की तोहमत।
गुफ्तगु हूँ अमन की, कड़ी तकरार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ ज़िन्दगी का तलबगार नहीं हूँ।
बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ।।
ज़िंदा हूँ...
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hey a very nice poem on Zindagi............enjoyed reading