कैसे श्रंगार लिखूँ ऐसे हालातों में
जाने क्या रखा है इन प्यार की बातों में
फैली महँगाई है कैसी मंदी छाई है
कैसे भागे ये भूत असर नहीं लातों में
कैसे.........
मेरे देश के ये नेता हमको बहलातें है
हम क्यूँ आ जाते हैं बेकार की बातों में
कैसे............
इनको भी मिले उनको भी मिले ये आरक्षण
हम सबको बाँटा है क्यूँ तुमने जातों में
कैसे...........
भ्रष्ट आचारों के चाक सब मिलके चलाते है
हर रोज हम पिसते है उस चाक के पाटों मे
कैसे.............
उजले से चेहरे है दिन के उजालों में
काली करतूतें है अंधियारी रातों में
कैसे........
हर दिन में होली थी हर रात दीवाली थी
अब कैसे मनाएं पर्व हम है अवसादों में
कैसे श्रंगार लिखूँ ऐसे हालातों में।
अनूप शर्मा 'मामिन'
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