ऐ हवा Poem by C. P. Sharma

ऐ हवा

ऐ शीतल मन्द सुंगन्ध हवा,
किन पहाड़ों की वादियों से
तुम आ रही हो?

इस प्रेमी ह्रदय को
यों गुदगुदा तुम
किस का संदेसा दिए जा रही हो?

ठहर जा पवन
कुछ देर यहाँ पे,
मै भी प्रीत की रीत निभा ही रहा हूँ।

फिर मेरी प्रेम पाती ले के तुम
वेग से बह मेरा संदेसा ले जाना
उसे सुना के धीरज बंधाना ।

ये अटपटी सी
प्रेम में लिपटी सी
मेरी प्रीत पाती तुम उसे पहुंचना

वो प्रेम व्यथित है
विरह पीड़ित है
थोड़ी सी राहत उसे तुम पहुंचना।

ऐ शीतल मन्द सुगंध हवा,
ये प्रेम संदेसा सुना प्रियतमा को
दुखी ह्रदय को तुम कुछ महकना।

ऐ हवा
Saturday, June 3, 2017
Topic(s) of this poem: love,separation,wind
COMMENTS OF THE POEM
Madhuram Sharma 10 June 2017

nice poem.......dear poet

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C. P. Sharma

C. P. Sharma

Bissau, Rajasthan
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