लाख सीने से लग जाते, तब भी मिलने को तरसते हैं।
इसीलिए कातिल नजरें दीदार को तरसते रहते हैं।।
चेहरे का मोहरा गुल हो जाता शर्म से शायद,
दिन औ रात उनके ही सुर -रव में जुदा हो जाते हैं।।
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