जो करती श्री श्रीकृष्ण को वश में,
विराजमान श्रीहरि उन करकमल में,
जिनकी छाया पाने को सुर-मुनिवर,
शोभित वही श्री श्रीकृष्ण मधुर अधर,
जिनमें प्राण भर करते नाद श्रीमुरारी,
गोपसखा गोपी छबि लख लेते बलिहारी,
उन वँशी को हम करते प्रणाम नित्य "नवीन"
नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, नाद प्रवीण।
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