जहाँ-जहाँ भी गया मैं,
हुआ कण-कण में तेरा दर्शन।
छूट गए उसी पल, प्यारे!
जन्म-मरण -चक्र बँधन।।
अकेले में भी तुमने मेरा साथ दिया सदा,
कभी न किया अपने से जुदा,
सामने आते रहे, मेरे खुदा!
होता रहा सदा तेरा-मेरा मिलन।
जब जन्म लिया, तब तुमने दिया सहारा था,
हर घड़ी, हर पल,
अपने करकमल से सँवारा था,
कभी रोने की बारी आई,
कर लिया आलिंगन-चुम्बन,
कभी न होने दिया,
मेरा करुण-क्रन्दन;
सब थे अनजान,
लेकिन लगते थे पुराने पहचाने,
इस रहस्यमयी लीला को,
तू ही बस जाने,
सभी रुपों में खड़े हो,
तुमने भर लिया अँकवार,
किया चुम्बन भरा दुलार,
बार-बार तुमको नमस्कार!
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