तेरी छबि Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तेरी छबि

Rating: 5.0

तेरी छबि
मंगलवार, २५ मई २०२१

उम्र का तकाजा
मैंने भी रखा मलाजा
दिल ने कहा 'अब तो आजा'
दिल की बात कान में समजा जा।

पूरी उम्र बीत गई
रात गई और बात पूरी हुई
तू ने सपने में भी झलक नहीं दिखाई
हो गई पूरी तरह हरजाई।

में बनाता रहा तेरी छबि
माना की तुज में है खूबी
तू ने निभाया अपना रोल बखूबी
हो गई पराई रहकर भी करीबी।

मैंने चाहा अपने तहे दिल से
ना निकाल पाया तुमको अपने मन से
यही मानता रहा एक दिन जरूर आओगे
अपनी असली जगह को फिरसे पाओगे।

दिल की खिड़की खोलकर में देखता रहा
मन को तहे दिल से भरोसा देता रहा
तुम ने आकर मेरे उजड़े बाग़ को सींचा
मेरे को ना मानते हुए भी अपनी और खिंचा।

आप आओगे मेरे पास मेरी याद को लेकर
में होउँगा शुक्र गुजार आभार मानकर
बारबार कहूंगा में यह सुनाकर
आजाओ अपने आप मेरी आरजू समझकर।

डॉ हसमुख मेहता
डॉ. साहित्य

तेरी छबि
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
आप आओगे मेरे पास मेरी याद को लेकर में होउँगा शुक्र गुजार आभार मानकर बारबार कहूंगा में यह सुनाकर आजाओ अपने आप मेरी आरजू समझकर। डॉ हसमुख मेहता डॉ. साहित्य
COMMENTS OF THE POEM

Pradiip K. Verma Admin बहुत ख़ूबसूरत। 💗 आशा ही तो है जो पल-पल आगे ले जाती है। · Reply · Share · See translation · 1 d

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welcome .. pradip k verma ·

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Chethana Ramesh ..w elcome

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कुछ कहानियां मेरी... welcome

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welcome......Нина Виноградова

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Varsha M 27 May 2021

अच्छी छवि बनाई है आपने कीमती और सुंदर। धन्यवाद।

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Sharad Bhatia 27 May 2021

बहुत बेहतरीन कविता..! ! आपका बहुत - बहुत आभार जो आपने इतनी बेहतरीन रचना से हम सबको मंत्र मुग्ध किया

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welcome Vikas Verma

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welcoem...Namita Verma

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welcoem.......... Renee Brokaw

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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