रुख़ मोड़ने में Poem by Sanjay Amaan

रुख़ मोड़ने में

लगे हों उन्हीं रिश्तों को तोड़ने में
फ़ना हों गये हम जिन्हें जोड़ने में ।

मज़ा क्या मिला आप को ये बताओ
किसी को तड़पता हुआ छोड़ने में ।

जिन्हें दिल समझते रहे मुद्दतों हम
उन्हीं पत्थरो को लगे फोड़ने में ।

मेरे दिल को तोड़ो न हमदम ख़ुदारा
बहुत वक्त लगता है दिल जोड़ने में ।

हुए हैं परिंदे 'अमान 'आज घायल
ज़रा सा हवाओं का रुख़ मोड़ने में । -by sanjay amaan 09987128585

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Sanjay Amaan

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