हमसफ़र को छोड़, मैं अधूरा रह जाऊंगा
चाहत के पल समेट, मैं बादल में बह जाऊंगा
साझा मौत से करना, तो सीख लिया था जबसे
क़ुरबत में इस क़दर, तेरा मैं रह जाऊंगा
पल किसी हम साथ ना हो, बस यही हक़ीक़त थी हमारी
आसमान ज़मीन से दूर रहे, यही बस्तियत रही सदा
रिश्तों से परे इस प्यार में तेरे, मैं तन्हा अकेले रह जाऊंगा
ख्वाइशों में फिर उलझे ना तू, वो सुनहरे अक्षर फिर से कह जाऊंगा
हमसफ़र को छोड़, मैं अधूरा रह जाऊंगा
चाहत के पल समेट, मैं बादल में बह जाऊंगा
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