Priya Guru

Priya Guru Poems

एक लम्हा मुझे हर शाम बुलाता है
कुछ ख़ास ही है बस तेरी बात बढ़ाता है
तेरी आँखों की कभी तोह कभी तेरी बात बताता है
कहना कुछ चाहता नहीं शायद, पर मैं सुनता हूँ घोर से
...

प्यार करता क्यों है, ये दिल
बेवजहा किसी पे मरता क्यों है दिल

तक़दीर की बंदिश होती है
...

maine dil se kaha, tu zara ek manzil toh de
ya phir dhoondh laaon use, teri rajaa-mandi toh de..
aankho ke khawaab sab khali pade hai
aangan bikhra sa hai, rahe paltane lagi hai
...

na jaane tum kyun karte ho ese, dekho ab ye manzar dil ko raas nahi hai
aankho ko din bhar bas, teri raahon ki talash rahti hai
shaam dhalte hi yadoon mein, simat kar kya so jaate ho phir
na jaane tum kyun karte ho ese, dekho ab ye manzar dil ko raas nahi hai
...

जब छलका आंसू आंखो से, उलझी सी बहकी सी याद बनके तेरी
समझकर मोती अपना लिया वो भी, लिया लहूं में उतार जानकर तेरा उसको
इरादा तोह किया था मरने का, विरह के इस दर्द में हमने
समय से मुकर आये यूं ही, जी लिया हर बार मानकर तेरा खुदको
...

सब उसूलों को पराये कर, एक नयी दुनिया बसाई थी हमने
तुझे पाकर महसूस हुआ, बहुत सी दुनिया भुलाई थी हमने

प्रीत तुझ संग ऐसी की, अगर चाहूँ तोह हर सांस में तेरा दीदार होता है
...

आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं
बोली है मीठी अगर समझूँ कभी

जब चंदा से पुछू आज कैसी है वो
...

रस्ते अधूरे छोड़ कर, अपनो से नाता मोड़ कर
पत्ते इश्क़ के तोड़ कर, बेपरवाह गुस्ताख़ जोड़ कर
एक डगर फिर एक डगर, इस नगर कभी उस नगर
शामें लिए हर राह पर, अश्को के सहारे रात भर
...

तुझे खुदा समझूँ तोह तुझे डर है
इश्क़ अगर समझूँ तो भी तुझे डर है
मैं इन्सां भी समझूँ, फिर भी तोह तुझे डर है
अब भला! तू ही बता, यूँ कैसे छोड़ दूँ तुझे
...

एक छोटी सी कविता सागर से बोली कुछ एसे
समंदर की लहरों में बेबाक दौड़ रहा था पगला
कभी गिरा कभी संभला, फिर गिरा फिर संभला
जब संभला तो वो उसको पहचान ना पायी
...

आज-आज मैं मैं कल-कल तू तू
ये सब तोह बहाने है

उसकी आँखे, इसका इश्क़
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हमसफ़र को छोड़, मैं अधूरा रह जाऊंगा
चाहत के पल समेट, मैं बादल में बह जाऊंगा

साझा मौत से करना, तो सीख लिया था जबसे
...

तु ही बता रे सांवरे!
अब तु ही बता रे

कैसे मिटादूँ वो एहसास न्यारे
...

कैसे जिये कैसे मरे तन्हा, तेरी मोहबब्त में
कभी पूछा तो नहीं,
ये फ़िकरे वो वादे और बस सब तेरी यादें, मगर
कभी पूछा तो नहीं,
...

अपनी मोहबब्त पे तो मोहबब्त भी मरती है
चाहत से ज्यादा चाह प्यार जुबां से भी करती है
तुम क्या हिसाब लोगे हमारे एहसासों का अब
ये खिदमत ये कुर्बत अब खुद ही नवाज़ी भरती हैं ज़ानिब
...

Priya Guru Biography

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The Best Poem Of Priya Guru

एक लम्हा

एक लम्हा मुझे हर शाम बुलाता है
कुछ ख़ास ही है बस तेरी बात बढ़ाता है
तेरी आँखों की कभी तोह कभी तेरी बात बताता है
कहना कुछ चाहता नहीं शायद, पर मैं सुनता हूँ घोर से

यूँही जो कल था वो मुझे आज बताता है
दीवानो लायक गुफ्तगू में उलझा हूँ जब भी
कहता है मैं तुझसे हूँ और तेरी बात बताता हूँ
शतिरबाजी है उसकी जो हमारे को आज बताकर कल दिखाता है

क्या वो लम्हा तुझको भी बुलाता है
ज्यों मुझे सताकर जाता है, क्या तुझे भी सताता है
क्या होती है शतिरबाजी तेरे सायें में उसकी

तोह क्यों ना हम तुम संग एक शाम सजाते है
टूटे दिए हटाकर उस पल कुछ नए दीपक जलाते है
जो आता है हमारे पास उससे वहाँ बुलाते है
अपनी बात बताते है और अपनी बात कराते है

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