दिव्य चेतना Poem by Shobha Khare

दिव्य चेतना

मेरेतेरे बीच न आए
तनमन की बाधा कोई
तब पावन प्रकाश से मै ने
निज जीवनवीणा धोई

मेरा पुण्य जगे, दुख भागे
मेरा देन्य मिटे सारा
तुझसे बढ्कर इस दुनिया मे,
भला कौन मुझको प्यारा

मेरे बिगड़े काम बना तू
विकसित कर मेरा अंतर
अनुष्ठान पूरा करने की
मुझ मे दिव्य चेतना भर दे II

Sunday, September 7, 2014
Topic(s) of this poem: Life
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