मृत्यु उपरांत Poem by Tribhawan Kaul

मृत्यु उपरांत

ब्रह्माण्ड में अधर
मैं, देख रही हूँ
पूर्ण शान्ति में
पूर्ण विश्राम में
अपना त्यागा हुआ चोला
रुदाली का तमाशा
रुदन करते शोकाकुल परिवार
चिर परिचित बन्धु बांधव
लाश के चारों ओर हाहाकार। ।

फिर एक बार प्रसूता से
गर्भनाल काटी गयी हो जैसे,
कट गया हो सम्बन्ध गर्भ से
कर दिया है मुझको
फिर से स्वतंत्र
विचरण करने को
मगर, ब्रह्माण्ड में।

देख रही हूँ
कानो कान फुसफुसाते हुए,
अफ़सोस जताते हुए
करीब और ना करीब को
उन सभी शब्दों को व्यवहार में लाते हुए
प्रशंसा में उपलब्ध हैं जो ।

किसी में हिम्मत नहीं
काले कर्मो का बखान करे,
अपने काले कर्मो को भूल कर
मगरमच्छी आंसू पोंछते हुए
दोस्त, दुश्मन, परिवार
श्वेत कर्मो की प्रशंसा करते है
जो किये ही नहीं और जो किये हैं
उनका फल शायद अगले जन्म में तय हो।I
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल
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मृत्यु उपरांत
Sunday, June 18, 2017
Topic(s) of this poem: death,soul
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Tribhawan Kaul

Tribhawan Kaul

Srinagar (J & K) India
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