खुदा मांग ले Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

खुदा मांग ले

मांगने से तंग होता है आदमी
यही है उसका ढंग नहीं है खुदा आदमी
जो भी मिला आजतक, वही है मिला हुवा
मुझे न मिला मुझसे कोई जुदा आदमी

मांग- ना है तो सबसे जुदा मांग लें
अपने हिस्से का अबके खुदा मांग लें

मांगने में दम ही दम हो, मांग तेरी कम ना हो
वक्त हो जाए दिल से, गुमशुदा मांग लें
अपने हिस्से का अबके खुदा मांग लें

मांग तेरी बम ही बम हो, मांगने में गम ना हो
बेफ़यादा हो जाए, बेवजह मांग लें
अपने हिस्से का अबके खुदा मांग लें

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: meditation
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