दिलों को जोडती है कविता Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

दिलों को जोडती है कविता

दिलों को जोड़ती है कविता
दीवारे तमाम सारी तोड़ती है कविता
खो गया है आदमी दूनिया के मेले में
घर की ओर राहें मोड़ती है कविता
आसान नहीं है शब्दो में बयां करना
शब्द को नि: शब्द से ओढ़ती है कविता
कभी बिहंसती हैं, रोती हैं, होती हैं शूर
आदम रिवाजो से लढ़ती हैं कविता
और नीरवता न हो तो बेमानी है स्याही
मंसूख़ सदा से ही पढ़ती है कविता

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: poetry
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