तुम आओगी, पुकरोगी, नज़र ये आस करती है Poem by Abhishek Omprakash Mishra

तुम आओगी, पुकरोगी, नज़र ये आस करती है

तुम आओगी, पुकरोगी, नज़र ये आस करती है
दुनिया, फिर न जाने क्यों, मेरा परिहास करती
ज़माना कुछ कहे लेकिन तुम्हे मालूम है प्यारी
मेरे दिल में तो बस राधे, तू ही तू बास करती है

कवि अभिषेक ओमप्रकाश मिश्रा

Tuesday, January 20, 2015
Topic(s) of this poem: love and pain
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