नभ मे घन Poem by Shobha Khare

नभ मे घन

आ गए, आ गए नभ मे घन
कह चहक उठे सब नर नारी
नव जलदो की अगवानी कर
है सबको हुई खुशी भारी


बादल पर बादल दौड़ रहे
आपस मे वक्ष मिलाते
क्या जाने कहाँ जा रहे ये
गर्जन से नभ गुंजाते

निज यात्रा के बारे मे कूछ
रहता इनको पता नहीं
कैसे आते कैसे जाते
पाता कोई बता नहीं

अभिनंदन की चाह न इन को
निंदा की परवाह नहीं
कोई इनके जीवन दर्शन
की पा पाता थाह नहीं II

Wednesday, May 27, 2015
Topic(s) of this poem: life
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