घन सघन हुए बरसें झमझम
जलधारा नहीं रही है थम I
सघन शाल वन झूम रहे है
पवन झकोरे घूम रहे है I
है मैदान हो गए जलमय
लहरे नर्तन करती तन्मय I
केशराशि बिखराकर बादल
सुलगाते उरमय विहरानल I
झड़ी लगी है कैसी मनहर
बरस रहे है बादल झर झर झर II
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