## औरत तेरे रूप अनेक ##
औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक।
क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख।
तेरा आँचल हर इसांन चाहे, तु ना हो तो रहे कोई काहे।
तेरी ममता को हर बच्चा तरसे, बन चंदन तु उन पर बरसे।
साबरिया अब दुआ ये चाहे, दे भाग्य मे मेरे इस दुआ के लेख।
औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक।
क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख।
भाई तेरी राखी को तरसे, बेटे पर बन चंदन तु बरसे।
जो इंसान साथी है तेरा, बन प्यार के बादल उन पर बरसे।
देख तु सारे रुपो को अपने, खुद को समझ ना दुनिया मे एक।
औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक।
क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख।
बिन प्यार के तेरे मर जाये हम, तेरे लिए कुछ कर जाये हम।
तु ना हो तो कैसे जिऐ हम, तेरे बिना सुना रहे आँगन ।
बरसा अपने प्यार को मुझपे, सुने पड़े इस आँगन को देख।
औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक।
क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख।
By-कुमार साबरिया
8058606438
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक। क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख। जिसके बिना घर और समाज का अस्तित्व संकट में आ जाता है, उस औरत को अपना अस्तित्व ही प्रश्नों से घिरा नज़र आने लगे, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. एक उद्देश्यपूर्ण कविता शेयर करने के लिये धन्यवाद, कुमार सावरिया जी.