अवसर सुनहरा Avsar Sunahraa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

अवसर सुनहरा Avsar Sunahraa

अवसर सुनहरा

समान्तयः कुछ बदलाव जरुरी है
मौसम हमारा प्रहरी है
उसको हर वक्त की जानकारी है
समय समय पर दिखाता 'अजुबा अलगारी ' है। अवसर सुनहरा


हमारा मन में कुछ अलग से भाव आते है
नदी का बहाव भी नए सिरे से होता है
उसकी फितरत एकदम शांत हो जाती है
मानो धीरे से कान में कुछ कहने को आती है। अवसर सुनहरा


फुलो में बैचेनी सी है
टनखियों में जैसे नयी चेतना जग रही है
कुछ और फूल बाहर आने की फ़िराक में है
बसंत का आगमन अचानक सा लगता है। अवसर सुनहरा


ये सब उपरवाले की मेहरबानी है
हमारा आनंद भी बस झझबाती है
तो क्या हुआ? ये सब सब तो कुदरती है?
हम अपनी पीठ थपथपाते है ओर केहते है 'इंसान तो मेहनती ही है '! अवसर सुनहरा


अंदरूनी डर भी सताता है
जिंदगी ख़त्म होने का डर सिहरन लाता है
पानखर का दस्तक देना एक और चीज़ का इशारा है
मौसम का बदलना ही अवसर सुनहरा है। अवसर सुनहरा

अवसर सुनहरा Avsar Sunahraa
Wednesday, October 19, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 19 October 2016

अंदरूनी डर भी सताता है जिंदगी ख़त्म होने का डर सिहरन लाता है पानखर का दस्तक देना एक और चीज़ का इशारा है मौसम का बदलना ही अवसर सुनहरा है। अवसर सुनहरा

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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