बना लिया मन अपना Bana Liyaa Man Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बना लिया मन अपना Bana Liyaa Man

बना लिया मन अपना

वो हमारी यादगार मुलाकात थी
शायद पहली ही बरसात थी
मौसम सुहाना भी था
में गुनगुना रहा था। बना लिया मन अपना

मेरे दिल में एक चमक उठ रही थी
नजर बार बार उनकी तरफ जा रही थी
शायद उन्हें किसी का इन्तेजार होगा
किसीने आनेका वादा किया होगा। बना लिया मन अपना

पर यह क्या! वो बार नजर क्यों निचे गडा रही थी?
बारबार मनोमन मानो कुछ व्यक्त कर रही थी
मेरा मन थोड़ा सा पसीज गया
उनके पास जानेका मन मैंने बना लिया। बना लिया मन अपना

क्या में आपके कुछ मदद आ सकता हूँ?
मैंने कहा 'में सच्चा मददगार बन सकता हूँ '
वो भी पसीज गए. हमारी ओर देख इशारा कर दिया
पास में पड़ी टेबल की और देखकर न्योता देही दिया। बना लिया मन अपना

मुझे घृणा हो रही है
पर उस सख्श की याद भी आ रही है
कितनी हद तक आदमी घिर सकता है
मैं अब भी नही मानती की वो मुझे बेवकूफ बना सकता है। बना लिया मन अपना

मोतरमा! आपके दिल का दर्द में समझ सकता हूँ
पर आप बताए, में क्या मदद कर सकता हूँ?
बने रहिये हमारे हमदर्द और हमसफ़र
कट जाएगा हमारा सुख भरा संसार। बना लिया मन अपना

हमें जमीं पाँव से खिसकती नजर आई
हमारी मंझिल ने सामने से आ कर बाहें फैलाई
में तो अपने आप को खुशनसीब ही समझा
बना लिया मन अपना और अभियान को बना दिया साझा। बना लिया मन अपना

बना लिया मन अपना  Bana Liyaa Man
Thursday, October 20, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 21 October 2016

x welcome velasco vincent Unlike · Reply · 1 · Just now 6 hours ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 21 October 2016

welcome Sanjay Indravadan Dave Unlike · Reply · 1 · 4 mins · Edited

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Mehta Hasmukh Amathalal 21 October 2016

welcome Sanjay Indravadan Dave Unlike · Reply · 1 · 2 mins · Edited

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 21 October 2016

welcome Neela Dave Unlike · Reply · 1 ·

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 20 October 2016

हमें जमीं पाँव से खिसकती नजर आई हमारी मंझिल ने सामने से आ कर बाहें फैलाई में तो अपने आप को खुशनसीब ही समझा बना लिया मन अपना और अभियान को बना दिया साझा। बना लिया मन अपना

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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