बस भावना हो... Bas Bhavna Ho Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बस भावना हो... Bas Bhavna Ho

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बस भावना हो सही

ना न हो कोई वाज न हो संग कोई साज
येतो मेरे दिल के लगन की है आवाज
दिल कह उठता है 'कविता मेरी है जान'
ना लिखू जिस दिन एकबार, हो जो जाता है बेजान

हर करवट पर एक नया, लम्हा जन्म ले लेता है
रातभर सोते नहीं हम, सवेरा हो जाता है
उस कोयल को मधुरी आवाज हमको
फिर ले आती है पास, मधुरी आवाज को

हम क्या लिखते है, थोड़ा सा भी मालुम नहीं
फिर भी तार छेड देते है, साज की जरुरत ही नहीं
कविता अपने अंदाज से रूप धारण कर लेती है
आप के सामने धीरे से, रखने को मजबूर करती है

में न कवि रहा न पंडित का कोई घ्यान है
बस लिखने को बेचारी कलम, और साथ में बेजुबान है
हमें याद है प्यार का वो फ़ल्सुफ़ा, वो क्यों हो गए हमसे बेवफा
ना जहाँ ये मेरा था, ना जान भी मेरी, फिर क्यों जताएं हम वफ़ा?

फिर भी में लिखता क्यों हूँ?
क्यों सबको अपना समजता हूँ?
संवेदन रूप को में क्यों उजागर कर रहा हूँ?
उत्तर नहीं मेरे पास फिर भी नज़रंदाज़ कर रहा हूँ

लिखुंगा शायद अंतिम साँस तक
वो बयान जो होगी अंतिम क्षण तक
सांसे भी चलती होगी रुक रुक
शायद दिल कह रहा होगा धक् धक्

वो शब्द बनकर गूंजेगे
अक्सर लम्बे समय तक महकते रहेंगे
हम रहे या ना रहे, कोई मायना नहीं
लिखते रही बस भावना हो सही

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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