चोट से Chot Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चोट से Chot

चोट से

चोट चोट ही है
चाहे फूल से लगे
या शब्दो के बाण से
पर आदमी घायल हो जाता चोट से।

आगजरती भाषा हो
आँखों में अंगारे हो
मुँह गुस्से से लाल हो
शरीर कम्पकम्पी से बेहाल हो।

फूल दो मगर प्यार से
भले ही सादे हो देखने से
पर रंग आँखो को भाये ऐसा हो
मन को शांति दे ऐसा मोहक हो।

प्यार से दो शब्द कह दो
पशु को भी आप पूचकार दो
चाहत की जंग छिड़ जायेगी
आँखों में एक तरह की ताजगी आ जायेगी।

ये पलकों का प्यार है
जो छू जाता आरपार है
अपनी कहानी भीतर नहीं रखता
पर सबके कानों में कह जाता।

कर लो सत्कार अपने अंदाज से
जैसे सफर करने जा रहे जहाज से
सब यात्री होंगे आपके साथ
लेकिन आप ले जा रहे होंगे यादे प्राणनाथ।

चोट से Chot
Thursday, June 8, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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कर लो सत्कार अपने अंदाज से जैसे सफर करने जा रहे जहाज से सब यात्री होंगे आपके साथ लेकिन आप ले जा रहे होंगे यादे प्राणनाथ।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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