दुनिया को तो
दस्तुर है प्यार का
मकसद है जीने का
एक दूसरे पे मर मीटने का
जीवन के महिमा को समझने का।
ना ही नाक नक्श देखते है
और नाही शक्ल नीरखते है
बस परखते है उसके नयन को
पढ़ लेते है उसकी जबान को।
कितना कह देती हो!
थोड़े में अपने आप को सिमट लेते हो
में तो गुम हो जाता हूँ विशाल समंदर में
जैसे ही तुम समा जाती हो भीतर में।
मेरा दिल कुबूल करता है
अपने आप से सवाल करता है
उसी अलफ़ाज़ को समाया जाय
क्यों ना कल को आज ही खुशनुमा किया जाय?
जिंदगी पूरी पड़ी है बिताने को
समझाने और समझने को
में कैसे कह दू 'वो मै ही हूँ '?
प्रेम में सिमटा खुद ही हूँ।
ना रखूंगा कोई कसर दिखाने को
ना आने दूंगा कोई दिक्कत जुदा करने को
जीवन है दूसरे छोर पहुंचना ही है
अपनी किश्ती को बचाना ही है।
उठाओ अपने नयन और मुस्कुरा दो
हवा के रुख में थोडी सी नरमी को आने दो
फूलों को भी थोड़ा सा हॅसने और महकने दो
अरे भाई! दुनिया को तो पता पड़ने दो!
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Aasha Sharma Awesome Hasmukh Mehta ji 1 hr · Like · 1 · Reply
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उठाओ अपने नयन और मुस्कुरा दो हवा के रुख में थोडी सी नरमी को आने दो फूलों को भी थोड़ा सा हॅसने और महकने दो अरे भाई! दुनिया को तो पता पड़ने दो!