·दिल गवाह
मेरे दिल में उठती चिनगारियाँ
नहीं मिटा सकती मेरी गलियां
बहुत सुन चुका में कहानियां
बहुत आगे बढ़ चुका था मेरा कारवाँ।
में नहीं कह पा रहा था
में नहीं कह भी सकता था
मन ही मन घुटन होती थी
हर दिन कुछ न कुछ अनहोनी होती थी।
फिर भी मेरा दिल गवाह था
अंदर ही अंदर वाहवाह करता था
पर आह भी भर लेता था
समय उसका गवाह हो जाता था।
मैंने कई बार सोचा
दिल को टटोला और खोजा
कही में गलत तो नही कर रहा!
समय करवट तो नहीं बदल रहा? ।
मेरी बढ़ती रही असमंजस
कही देखता रहा वैमनस्य
कही देखा सामंजस, कही देखा समरस
पर नहीं दूर हुई चन्द्रमा की अमावस।
यदि मेरा दिल है काला!
तो कहाँ से आएगा उझाला
में गुनगुनाऊ या मुरजा जाऊं
पर मन की शांति नहीं पाऊं।
यदि हर आदमी नी ऐसा सोचे
पर नीचे कभी ना देखे
ना सोच पावे या ना दिखा पावे
वो कसी को कैसे भरोसा दिला पावे?
डॉ.हसमुख मेहता
साहित्यिकी
Kirit Jain ईरशाद क्या खूब लिखा है आप ने ReplySee translation3 d
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welcome ....Purlett Wright