Hope(Umeed) Poem by Poonam Mehta

Hope(Umeed)

Rating: 3.5


ज़िन्दगी कुछ इस तरह बसर किये जा रहा हूँ मैं,
अपनों से दूर गैरों के लिए जिए जा रहा हूँ मैं.

अक्सर पीछे मुड के देखता हूँ शायद
शायद कोई आवाज़ दे बुला ले मुझे,
इसी उम्मीद पे अब जिए जा रहा हूँ मैं,

एक माँ है जो हर दर्द मेरा समझती है
खुद तकलीफ में हो कर भी मेरी लिए दुआ करती है
चाह कर भी उसके साथ समय नहीं बिता प़ा रहा हूँ मैं.
बस इसी ग्लानी में जिए जा रहा हूँ मैं

जब भी देखता हूँ दो भाई लड़ते हुए
कभी तो एक होंगे वो,
इसी आस में जिए जा रहा हूँ मैं.

सुना था पल दो पल की होती है ज़िन्दगी
पर हर दिन सालों सा जिए जा रहा हूँ मैं,
ज़िन्दगी कुछ इस तरह बसर किये जा रहा हूँ मैं,
अंधेरों में उजाले तलाश किये जा रहा हूँ मैं,

COMMENTS OF THE POEM
Allemagne Roßmann 08 September 2012

zindagi yani umeedein.......enjoyed this poem

0 1 Reply
Deepak Manchanda 26 August 2012

Yeh hi andhere mai ujala dikha!

0 1 Reply
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