काश हम रो ही पाते, , kaash ham Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

काश हम रो ही पाते, , kaash ham

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काश हम रो ही पाते

काश हम रो ही पाते
केह देते बात चलते चलते
लोग सुन भी लेते तो क्या करते?
रुलाई मेरी बढाते और जग हसाईं कर लेते

मुझे क्या मालूम था?
चेहरा भी इतना मासूम था
हम तो खो गए उन नयनों में इस तरह
पानी बहता रहा जैसे जल का प्रवाह

प्यार यदि ईश्वरीय देंन ना होता!
प्रुरुष आज हेवान ही रह जाता
नो होत्ता कोई उसपर काबू
फुल भी अच्छा ना दिखता और फैलाता बदबू

कह ते थे वो अक्सर'भुला हमें ना देना'
हमने भी सूना उनको और वचन दे डाला
हम हो गये आपके अब बोलो कहा है जाना
ये जिन्दगी बोलो अब क्या है करना?

चले रहे दिन अपनी खूब मस्ती में
पर हम खो गए मोजमस्ती में
ना रहां ख्याल आगे क्या होनेवाला है?
आग का उठेगा गोला या फिर दहकती ज्वाला

वो लिपट कर बोले हमसे 'कैसे बिताओगे दिन'?
मानो हम साथ ना रहे और उठ गया ये दिल
हमने कहा मर ही जायेंगे कैसे काटेंगे दिन
घूमेंगे सारा जहाँ बजाके प्यार की धुन

हम रहे या ना रहे पर गूंजते रहे ये बोल
प्यार में होता नहीं किसी का तो और मोल
खुशनसीब वो होते है जो पूरा करते है सपना
होती पूरी है लगन और वो लगते है नगीना

COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 September 2013

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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