कानाजी...Kanaji Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कानाजी...Kanaji

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कानाजी

शुक्रवार, ६ जुलाई २०१८

कानाजी
बात हमारी सुनो जी
आपने कितनी मटकियां फोड़ी जी
घर में बहुत फटकार पडी जी।

नहीं कहा जाय
और नाही सहा जाय
बस अब और नहीं
इतना सताना ठीक नहीं।

घर घर सूना
ओर गलियां सुनी
हर घर से एक ही आवाज आती
कनैया की है ज्यादा ज्यादती।

किसे करें फरियाद?
कोई ना सुने हमारी दाद
यशोदा कहे में कुछ नहीं जानती
आप सब मिलकर उसे सताती।

चोरी और सिनाजोरी
हाँ क्यासखियाँ बेचारी?
वो है ही ऐसा!
सब के दिल में उतर जाय ऐसा।

बस हमें ही कुछ करना पडेगा
उसको रस्सी सेबांधना पडेगा
सब गए तालाब नहाने
कांजी को मिल गए बहाने।

चुराए के छिपा दिए सब के वस्त्र
नहीं मिले कपडे और सूरज हो गया अस्त
मन्नते और विनती करनी पड़ी
बड़ी मुश्किल से जान को छुड़ानी पड़ी।

"नहीं करेंगे अब किसी से शिकायत"
सबको झेलनी पड़ी डांट और दे दी गई हिदायत
"कानाजी तो देखो" हमारी ही बोलती बंध कर दी
हमारे प्रेम की यूँही बेइज्जती कर दी।

हसमुख अमथालाल मेहता

कानाजी...Kanaji
Thursday, July 5, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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नहीं करेंगे अब किसी से शिकायत सबको झेलनी पड़ी डांट और दे दी गई हिदायत कानाजी तो देखो हमारी ही बोलती बंध कर दी हमारे प्रेम की यूँही बेइज्जती कर दी। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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