कवियोंको बहका देती है.. kaviyon ko Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कवियोंको बहका देती है.. kaviyon ko

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कवियोंको बहका देती है

सुबह हो जाने पर भी उठ ना पाया
किरणों ने भी चेहरे पर आतंक ढाया
पता नहीं आज गमगीनी को लेकर सोया था
कुछ दोस्तों ने भी खूब सताया था।

मुझे आदत है बात करने की
उन सब को आदत है कतरा जाने की
उन्हें लगता है में बातूनी हूँ
फालतू बातों का धनी हूँ।

हम तो छोटे से कवि है
सब से मिलते है जैसे रवि है
पर वो सब कन्नी काट लेते है
मुझे मायूस कर के भाग लेते है।

मुझे सब लोग 'सूर्यवंशी' कहने लगे है
बातबात में बेबसी का जिक्र करने लगे है
मुझे समज में आता है पर मजबूर हूँ
उनसे बात करने को आतुर हूँ

समंदर पार करना मुश्किल नहीं होता
बस ऊँची ऊँची लेहरों से डर लगता
समंदर का रोद्र स्वरूप देखकर दिल बेठ जाता है
मानो कोई अपना सा आकर डराने धमकाने लगता है

सामाजिक संघठन या संस्थाएं आधार होती है
समयसमय पर कुछ बातें उछलती रहती है
आदमी को अपनी बात कहने का मौका मिलता है
दिल की बात करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है

इसलिए मैंने लिखा ' सूरज मुझे नहीं सुहाता'
चन्द्रमा दिल को लुभाता और मनको खूब भाता
उसकी ठंडी सी चादर मुझे कुछ और प्रदान करती
दिल को खुश करने के लिए बहुत सारी बातें करती

खेर मैंने कह दिया 'गुलाब फूलों का राजा होता है'
उसको अपना रूप निराला है वो पत्ता नहीं होता है
'उसकी खुश्बू हवा दूर तक ले जाती है' और महका देती है
हम जैसे छोटे छोटे कवियोंको बहका देती है

Wednesday, June 25, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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Keshav Kumar likes this. Keshav Kumar VERY NICE LINES SIR 46 mins · Unlike · 1

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2 people like this. Hasmukh Mehta welcome parin pat akash shethel n Just now · Unlike · 1

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Mangatrai Rai likes this. Hasmukh Mehta welcome Just now · Unlike · 1

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Taran Singh likes this. Taran Singh Bahut khoob Hasmukh Mehta jio 7 hrs · Unlike · 1

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Seen by 3 DrDevendra Singh Tanwar likes this. Hasmukh Mehta welcome Just now · Unlike · 1

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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