'लाल स्याही से" Lal Syahi Se Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

'लाल स्याही से" Lal Syahi Se

'लाल स्याही से"

पाँव की जुती समान भी हम नहीं
पर है कायल उनके रूप के सही
हर वायदे में खरे उतरेंगे
कहा हम उनका जरूर से मानेंगे। 'लाल स्याही से


नजरे हमारी इनायत होगी
हमारी तरफ से शिकायत कोई ना होगी
उनके हर बोल पर हमारी संमति होगी
उनकी रही सही कसर भी पूरी होगी। 'लाल स्याही से


जीवन है एक घोंसला
रहना है साथ ओर करना है दूर फासला
करेंगे प्रयास साथ तो दूर होगी कठिनाई
हर बार कान में गूंजती रहेगी सहनाई। 'लाल स्याही से


हमारी हर कामना पूरी होगी
आपकी मांग सिंदूर से भरी होगी
बिंदिया हमारे मिलन का सुबूत होगी
हर रात और सुबह मजबूती देगी। 'लाल स्याही से


यह ना कहना 'हमें इजाजत लेनी होगी'
अन्यथा इज्जत की सरेआम लीलामी होगी
हम तो आपकी सरहद में अब आही चुके है
हमारा बंधन 'लाल स्याही से 'लिख चुके है। 'लाल स्याही से

'लाल स्याही से" Lal Syahi Se
Tuesday, October 18, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 October 2016

यह ना कहना हमें इजाजत लेनी होगी अन्यथा इज्जत की सरेआम लीलामी होगी हम तो आपकी सरहद में अब आही चुके है हमारा बंधन लाल स्याही से लिख चुके है। लाल स्याही से

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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