Lathi Or Goloyaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

Lathi Or Goloyaa

लाठी और गोलियां भी चलवाएंगे

नहीं स्वीकार है हमें दासत्व
सिर्फ धरती ही है हमारी मातृतुल्य
हमें गर्व है माँ भारती पर
हमें दुःख होता है उसकी बेइज्जती पर

आपने करार जवाब देना है
दिन दहाड़े आपने तारे दिखाना है
ये ढकोसला और मगरमच्छ के आँसू
आपने छिनना है गद्दी बनाके रूआँसू

कश्मीर के गद्दार के दिल्ली में है
खेल सारा चूहा और बिल्ली में है
माके सपूत मारे जा रहे है
ये दिल्ली में एश और आराम फरमा रहे है

सारा हिन्दुस्तान तो इन्होने बाँट दिया है
कहीं जाती के आधार पर तो कही मजहब का नाम लिया है
अब बस धरती को बेचना ही बाकी है
अपने हाथ में सिर्फ बैसाखी आना बाकी है

क्यों लटकाए नहीं जाते तुरंत आतन्कियोंको?
क्या वजह है सत्य नहीं बताया जाता देशवासियोंको?
हब तक ये सोचेंगे अपने आपमें एक महाराजा
अब तो हमें दिखाना है उन्हें दरवाजा

अंग्रेज किसलिए निकाले गए?
राजा महाराजा क्यों मिटाए गए?
आजकल कितने अनगिनत प्रधान बने बैठे है?
पुरे देश का धान ये लोग चबाने बैठे है

गरीब को रोटी नहीं और अनाज सड रहा है
बाहर खुले में भगवान् भरोसे पडा है
बरसात के कुछ दिन पहले खरीदी शुरू कर देंगे
सड जानेका बहाना करके पुरा माल डकार लेंगे

इन्होने तो पेंशन का इन्तेजाम कर लिया है
सरकारी प्लाट पर अपना मुकाम बना लिया है
अब खुले में बेशर्मी से एलान कर देंगे
दो रुपया गेहू और और चावल का मोल तय कर देंगे

किसने कहा, किसको सुनाया और किसको देना है?
सब नाटकबाजी, महज दिखावा और बहांना है
शराब की नदिया बहा दी जाएगी
लोकशाही के नाम पर गुंडागर्दी हावी हो जाएगी

ना रोटी नसीब होगी और नाही आलू और प्याज
बेंको को भी प्यारा है अपना मुनाफा और व्याज
अरे ये कसाई नहीं जो एक बार में संतुष्ट हो जायेंगे
समय आनेपर लाठी और गोलियां भी चलवाएंगे

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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