में सहमत हूँ Me Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में सहमत हूँ Me

में सहमत हूँ
पर असहमत हु
उनके लिए जो बेकसूर है और मारे जाते है
जिन को अल्लाह का नाम याद दिलाया जाता है
और जब वो नमाज में मस्त है
तो भी गोली मार दी जाती है।
वो तो उसकी बंदगी में मस्त है
और उसका अस्त हो जाता है।
में कायल हूँ
हुसैनियत का इकबाल करता हूँ
मजहब का पूरा सन्मान
पर ये कैसा है जुल्म और अपमान।
अल्लाह ने नूर भेजा
अपने उसूल भेजे
करबला और मक्का दिया
कई जिंदगी यों को बचाया।
हम कायल है उन नमाजी उसूलों के
मानते भी है की उसूल हो तो रसूल के
पर कुछ करके दिखाओ मजहब के लिए
भाईचारा भी तो है सन्देश हुसैनियत के लिए।

Sunday, June 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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welcome mahesh shah

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अल्लाह ने नूर भेजा अपने उसूल भेजे करबला और मक्का दिया कई जिंदगी यों को बचाया। हम कायल है उन नमाजी उसूलों के मानते भी है की उसूल हो तो रसूल के पर कुछ करके दिखाओ मजहब के लिए भाईचारा भी तो है सन्देश हुसैनियत के लिए।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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